न बिल्डिंग न स्कूल, पहाड़ों की चलती फिरती घोड़ा लाइब्रेरी, गांव-गांव बच्चों को हो रही किताबें उपलब्ध..
क्या आपने कभी चलती फिरती लाइब्रेरी देखी है? नहीं देखी होगी ना? लेकिन कुछ युवाओं ने मिलकर ऐसा मुमकिन कर डाला है. चलिए आज आपको हम बताते हैं कि युवाओं ने यह चलती फिरती लाइब्रेरी कैसे शुरू की और इस लाइब्रेरी का नाम उन्होंने घोड़ा लाइब्रेरी क्यों रखा है. उत्तराखंड के नैनीताल में अनोखी और खास लाइब्रेरी फेमस हो रही है. न तो इसकी कोई बिल्डिंग है न ही किसी स्कूल में ये लाइब्रेरी है. इतना ही नहीं लाइब्रेरी कहीं भी आ जा सकती है. दरअसल ये चलता फिरता पुस्तकालय घोड़े की पीठ पर है. घोड़े पर किताब लादकर बच्चों तक किताबें पहुचायी जाती है. ये लाइब्रेरी बेहतरीन काम कर रही है. इंटरनेट पर यह चलती फिरती लाइब्रेरी जमकर वायरल हो रही है.
बच्चें विद्यालय से दूर फिर भी पहुंच रही है पुस्तक
छुट्टियों में बच्चे विद्यालयों से दूर हो रहे हों, लेकिन पुस्तकें बच्चों से दूर नहीं हैं. नैनीताल जिले के सुदूरवर्ती कोटाबाग विकासखंड के गांव बाघनी, जलना, महलधुरा, आलेख, गौतिया, ढिनवाखरक के हर तोक हिमोत्थान और संकल्प यूथ फाऊंडेशन संस्था द्वारा, बच्चों तक बाल साहित्यिक पुस्तकें पहुंचाई जा रही हैं.
घोड़ा लाइब्रेरी के संयोजक हैं शुभम बधानी
इसकी शुरुआत शुभम ने 12 जून, 2023 में की थी. गर्मियों की छुट्टियों से शुरू हुआ घोड़ा लाइब्रेरी का यह सिलसिला, बरसात की कठिनाईयों में अनवरत जारी है और पहाड़ के बच्चों के लिए एक संजीवनी का काम कर रहा है. संपर्क ब्लॉक मुख्यालय से कट चुका है. हर परिस्थिति में पहाड़ के बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचाने का लक्ष्य घोड़ा लाइब्रेरी के तहत रखा गया है. हिमोत्थान के प्रोजेक्ट एसोसिएट लाइब्रेरी कार्डिनेटर एवं संकल्प यूथ फाऊंडेशन के अध्यक्ष शुभम बधानी ने एक चलती फिरती लाइब्रेरी की पहल शुरू की. एक ऐसी लाइब्रेरी जिसके कदम पहाड़ों की चढ़ाई में भी, निरंतर आगे बढ़ें. नाम दिया गया घोड़ा लाइब्रेरी.
आगे शुभम बधानी ने बताया कि पर्वतीय गांव बाघनी, छड़ा एवं जलना के कुछ युवाओं एवं स्थानीय शिक्षा प्रेरकों की मदद से घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत की. शुरुआती चरण में ग्रामसभा जलना निवासी कविता रावत एवं बाघनी निवासी सुभाष को इस मुहिम से जोड़ा गया. धीरे-धीरे गांवों के कुछ अन्य युवा एवं स्थानीय अभिभावक भी इस मुहिम से जुड़ते गए.
दुर्गम तोको में भी बच्चों को पहुंचाई जा रही है पुस्तकें
गांव के दुर्गम पर्वतीय ग्राम तोकों में “घोड़ा लाइब्रेरी” के माध्यम से पुस्तकें पहुंचाई जा रही हैं, ताकि पहाड़ के बच्चों को भी पढ़ने के लिए, रोचक कहानी-कविताएं निरंतर मिल पाएं. इस मुहिम की सबसे खास बात यह है कि इसमें घोड़ों का सहयोग कम्युनिटी द्वारा दिया जा रहा है. अभिभावकों के बीच से ही किसी एक अभिभावक द्वारा हफ्ते में एक दिन के लिए अपने घोड़े का सहयोग, घोड़ा लाइब्रेरी के लिए दिया जाता है.
क्या है घोड़ा लाइब्रेरी
जैसा कि नाम से पता चलता है, एक घोड़ा है जो अपनी पीठ पर किताबों का एक गुच्छा लेकर चलता है और एक गाँव से दूसरे गांव जाता है, और हर उस व्यक्ति के लिए रुकता है जो एक या दो किताबें पढ़ना चाहता है. यह कहना सुरक्षित है कि इस विचार को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली और कई लोगों, युवा और वयस्कों, ने अद्वितीय पोर्टेबल लाइब्रेरी का उपयोग करना शुरू कर दिया.
माता-पिता की सहभागिता ने बनाई यह पहल सफल
इस पहल की सफलता माता-पिता की सहभागिता के कारण थी. एक व्यवस्था की गई थी जहां माता-पिता हर हफ्ते अपने घोड़ों का एक दिन योगदान करते हैं और बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए मिल रही है जिससे बच्चे भी पढ़ाई में भी और रुचि लग रहे हैं.
इस पहल का मुख्य उद्देश्य क्या है?
होर्स लाइब्रेरी का मुख्य उद्देश्य गांव के बच्चों को पुस्तकों और अन्य अध्ययन सामग्रियों की सुविधा प्रदान करना है, खासकर जब स्कूल बंद होते हैं, ताकि उनकी पढ़ाई बिना रुके जाए.