उत्तराखंड के आराध्य देव गोलज्यू की कहानी: न्याय के देवता को भी मारने की हुई थी साजिश PART-3
उत्तराखंड में कोस-कोस पर बदली बोली में लोग भगवान गोलज्यू को ग्वेल, गोरल, गोलू, गोरिया, गुल्ल, ग्वाल्ल, दूदाधारी, गौर भैरव के नाम से पुकारते हैं। पौड़ी गढ़वाल में लोग उन्हें कंडोलिया के नाम से पूजते हैं। लेकिन आज इतने नामों से पूजे जाने वाले गोलज्यू का सफर इतना आसान नहीं रहा। इसमें कोई संशय नहीं कि वो खुद शिव अवतारी थे। राजा हालराय धूमकोट ( आज का धूमाकोट) के बेटे थे। जिनका जन्म राजा हालराय की आठवीं रानी कलिंगा यानी काली के गर्भ से हुआ था।कलिंगा शिव भक्त थी। माता कलिंगा बेहद धर्मप्रिया थी और पंचनाम देवताओं, हरू, सैम की एकमात्र बहन थी।
कलिंगा का विवाह राजा हालराय से हुआ। राजा हालराय कलिंगा से बेहद प्रेम किया करते थे। लेकिन उनका ये प्रेम उनकी पुरानी सात रानियों को पसंद नहीं आया। उन्होंने प्रसव के दौरान माता कलिंगा के गर्भ से पैदा हुए बच्चे गोरिल को मारने की कई कोशिश की। सातों बड़ी रानियों ने दाई के साथ मिलकर कुलरीति का हवाला देते हुए प्रसव के दौरान कलिंगा के आंखों पर काली पट्टी बांध दी और कानों में रुई ठूंस दी। ताकि कलिंगा न तो बच्चा होने के तुरंत बाद उसका मुंह देख सके और ना ही बच्चे की किलकारी सुन सके।
कलिंगा के बच्चे को किया गायब
जैसे ही कलिंगा ने गोरल को जन्म दिया पहले से तय साजिश के मुताबिक सातों रानियों ने मिलकर बच्चे को गायब कर दिया। बदले में कलिंगा के पास प्रसव खून से लथपथ पत्थर का सिल और बट्टा रख दिया। और कलिंगा को कहा कि तुम्हारे पेट से कोई बच्चा नहीं बल्कि ये पत्थर निकले हैं। जिससे नौ महीने से अपने शिशु का मुंह देखने की आस लगाए कलिंगा बेहद दुखी हो गई। राजा हालराय को इसकी सूचना दी गई तो वो भी एक तरह से निष्प्राण हो गए। साथ ही उस ऋषि को मन ही मन कोसने लगे जिसने उन्हें आठवां विवाह करने की सलाह देते हुए उनके घर में साक्षात शिव अवतारी पुत्र होने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन इस सबके बीच सातों रानियां अपनी साजिश को अंजाम देने में लगी हुई थी। सातों रानियों ने मिलकर पहले नवजात शिशु को गायों के तबेले में रख दिया। ताकि गोरल की मृत्यु गायों के खुर के नीचे दबने से हो जाए। लेकिन गोरल की यहां मृत्यु होने के बजाय गायें अपने थनों से सीधे गोरल को दूध पिलाती दिखीं। जिसके बाद रानियों ने गोरल के शरीर में नमक लगाकर गड्ढे में दबा दिया। गोरल यहां भी जिंदा बच गए। इसके बाद रानियों ने गोरल को बिच्छु घास में डाल दिया। लेकिन वो यहां भी बच गए। अंत में सातों रानियों ने कलिंगा के बच्चे को एक लोहे के बक्से में बंद कर काली नदी में फेंक दिया। बक्सा बहते-बहते तेज और साफ-सुथरे पानी वाली गोरी नदी में पहुंच गया। लेकिन गोरी नदी के तट पर मौजूद धीवर जाति के लोग जिसे आज धीवर-कोट कहते हैं वो देख रहे हैं कि नदी नीचे को बह रही है लेकिन लोहे का भारी संदूक नदी की धारा के विपरीत बह रहा है। धीवर जाति के लोगों के लिए ये किसी चमत्कार से कम न था। इसी धीवर जाति में भाना नाम का एक निःसंतान व्यक्ति था। जिसने रस्सी और जाल नदी में फेंका तो भारी संदूक उसमें फंस गया। भाना अपनी धीवरी यानी पत्नी को आवाज लगाता है और कहता है इधर आओ आज न जाने जाल में ये क्या फंस गया है।इसे खींचने आओ। इसे पार लगाते हैं। दोनों ने मिलकर संदूक को किनारे खींचा। ज्यों ही उन्होंने बक्सा खोला उनकी आंखें खुली की खुली हो गई। क्योंकि बक्सा खोलते ही भीतर से एक ऐसा तेजोमयी बालक मुस्कुरा रहा था जिस पर यकीन करना भी मुश्किल था। बालक का गोरा मुंह देखकर धीवर कहने लगा ऐसा लग रहा है मानो ये गोरी का पुत्र गोरिया है। ये नदी तो हमारे लिए पुत्रदायिनी हो गई। हम इ से खुशी से गोद ले लेते हैं। और इसक नाम गोरल रख देते हैं। शिशु को गोद लेते ही बाझ धीवरी के स्तन भी दूध से भर उठे। जिस पर यकीन करना मुश्किल था। धीवरी ने प्रभु का धन्यवाद किया। बच्चे के घर में प्रवेश करते ही मानो धीवरी का घर सुख-संपदा से भरने लगा। बाझ गायें दूध देने लगी। और धीवरी के घर अद्धुद बालके पैदा होने के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे। ब्राह्मणों ने बाकायदा बच्चे का नामकरण संस्कार किया। और भाना को बताया कि इसका जन्माक्षर ग है। और राशि कुंभ है। इसलिए इस बालक का नाम ग से ही रखा जाना चाहि। भाना बताता है कि मैंने इसका नाम उसी दिन गोरल रख दिया था जिस दिन ये मुझे गोरी नदी में मिला था।
ब्राह्मण भाना को बताते हैं कि उनका ये बालक साक्षात शिव का ही रुप है। और तुम्हारे पास कृष्ण की भांति आया है और तुम्हारी पत्नी धीवरी भी यशोदा समान है। यह ग्वल्ल श्री भैरव व न्यायकारी है। और कुमाऊं में महाप्रतापी बनेगा। पहले यह सुंदर राजा और फिर देवता बनेगा। इसी प्रकार ये प्रतापी बच्चा बड़ा होता गया और पांच वर्ष की अवधि तक पहुंच गया। तब भाना और धीवरी ने बच्चे के कर्णभेद की योजना को तैयार किया। इसी दौरान गोरिल ने पिता से लकड़ी का एक सफेद रंग का घोड़ा उपहार में मांगा। जिसे बनाने के लिए बढ़ई ने दो से तीन महीने का वक्त मांगा। इसी घोड़े के स्वप्न देखेते-देखते एक रात गोरल को अनोखा सपना होता है। सपने में आने वाला शख्स अपना परिचय देते हुए कहता है कि हे गोरल मैं तुम्हारे मामा पंचनाम देवता हैं। तुम असल में धूमाकोट के महाप्रतापी राजा हालराय के पुत्र हो और कलिंगा तुम्हारी मां है। तुम्हें पैदा होते ही तुम्हारी सौत मांओं ने काली नदी में फेंक दिया था। इस प्रकार ये पूरी कथा गोरल अपनी मां धीवरी को बताते हैं। और कहते हैं मां आपने मेरे प्राण बचाए, मुझे पाला-पोसा, लेकिन मेरी जननी माता कलिंगा है और नियती ऐसी रची की आप मेरी मां हो गई। मैं आपको बारमबार प्रणाम करता हूं। इसके बाद शुरु होती है गोरल की अपनी मां कलिंगा और पिता हालराय से मिलने की कहानी….और साथ ही न्यायकारी देव बनने का कहानी…जिसे आप अगले हिस्से यानी PART- 4 में पढ़ेंगे…