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आखिर क्यों वोट के बाद लगता है उंगुली पर स्याह निशान! कहां बनती है ये स्याही? कब से लगाई जा रही है ये स्याही? जानिए सारे सवालों के जवाब

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वोट डालने के बाद हर किसी व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता है कि वोट डालने के बाद हमारी उंगली पर स्याही क्यों लगाई जाती है। और यह स्याही कौन सी होती है जो काफी समय तक नहीं हटती हैं। इस स्याही का इस्तेमाल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में मतदान के बाद स्याही से चिन्हित किया जाना अनिवार्य है। ख़ास बात यह है कि दुनिया के अधिकांश देशों में यह स्याही भारत से ही जाती है।

हम आपको आज इसकी जानकारी देते हैं… बता दें कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र का अर्थ है आप वोट डालकर अपनी सरकार बनाते हैं। इसलिए किसी भी चुनाव में वोट डालने पर आपके बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर स्याही से निशान लगाने की परंपरा रही है। यह इस बात का संकेत है कि आप वोट डाल चुके हैं।

बता दें कि यह एक ऐसी स्याही होती है, जिसके दाग़ जल्दी नहीं मिटते हैं। शुरू में यह बैंगनी रंग की नज़र आती है, लेकिन समय बीतने के साथ ही यह काली पड़ जाती है। इसे अमिट स्याही या इंडेलिबल इंक के नाम से जाना जाता है।

अमिट स्याही लगाने से एक फ़ायदा होता है कि इससे पता चलता है कि इस व्यक्ति ने वोट कर दिया है। दूसरा फायदा यह कि वो व्यक्ति दोबारा वोट नहीं डाल सकता है।

कहां और किस तरह तैयार होती है ये स्याही

अधिकांश लोग के मन में यह सवाल भी उठता है कि आख़िर यह स्याही भारत में बनती कहां है? आपको बता दें कि यह अमिट स्याही भारत में दो जगहों पर बनती है- तेलंगाना के हैदराबाद की रायुडू लेबोरेटरी और कर्नाटक के मैसूर के मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड कंपनी में। भारत का चुनाव आयोग मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड में बनी स्याही का इस्तेमाल करता है जबकि रायुडू लेबोरेटरी में बनी स्याही दुनिया के दूसरे देशों में भेजी जाती है।

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भारत के अलावा दुनिया के करीब 90 देशों में इस स्याही का इस्तेमाल होता है। इसमें से 30 देशों में स्याही की आपूर्ति मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड कंपनी ही करती है। शुरुआती दिनों में इस स्याही को छोटी बोतलों में भरकर निर्यात किया जाता था।

रायुडू लेबोरेटरी के सीईओ शशांक रायुडू के मुताबिक़ आधुनिकतम तकनीकों के चलते 2014 के बाद से इस अमिट स्याही से बने मार्कर का निर्यात किया जा रहा है। इस स्याही का इस्तेमाल पल्स पोलियो प्रोग्राम में भी होता है जिन बच्चों को टीका लग जाता है, उन्हें टीके लगने का चिन्ह भी इसी स्याही से लगाया जाता है।

पानी में नहीं घुलती है स्याही

अमिट स्याही में 10 से 18 प्रतिशत मात्रा सिल्वर नाइट्रेट केमिकल की होती है। जब चुनाव अधिकारी इसे उंगली पर लगाता है तो यह हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ प्रतिक्रिया कर के सिल्वर क्लोराइड बनाता है। चूंकि सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है तो यह हमारी त्वचा से जुड़ा रह जाता है। उंगली पर लगने के सेकेंड भर बाद ही यह अपना निशान बना लेता है और 40 सेकेंड में पूरी तरह सूख भी जाता है।

खास बात यह है कि पानी के संपर्क में आने के बाद इसका रंग काला हो जाता है। आप चाहे जितना भी साबुन, पाउडर या तेल रगड़ लें, ये छूटेगा नहीं। इसका निशान कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता।

चुनाव आयोग लाखों बोतलें करता है आर्डर

इस स्याही का इस्तेमाल 1960 के दशक से हो रहा है। चुनाव आयोग के मुताबिक़ 2014 के आम चुनाव में 21 लाख बॉटल स्याही का ऑर्डर दिया गया था। जो 2019 के आम चुनावों में बढ़कर 26 लाख तक पहुंच गया था।
चुनाव आयोग की ओर से मार्च 2015 में जारी हुए एक आदेश के मुताबिक़ स्याही बाएं हाथ की तर्जनी उंगली के नाखून के आख़िरी सिरे से प्रथम जोड़ के नीचे तक ब्रश से लगाई जाएगी। जिस ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है, उसका निर्माण भी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड ही करता है।

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मतदान अधिकारी जो ईवीएम कंट्रोल यूनिट के प्रभारी होते हैं, उनका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि कंट्रोल बैलेट का बटन दबाने से पहले मतदाता की उंगली पर स्याही का निशान पूरी तरह से लगा हो। एक सवाल यह भी उठता है कि अगर किसी मतदाता के हाथ पर पिछले चुनाव की स्याही का निशान लगा हो तो स्याही कहां लगाई जाएगी। इस सवाल का जवाब चुनाव आयोग ने राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को मार्च 2021 में लिखे एक पत्र में दिया है।

आयोग ने इस पत्र में लिखा है, ”बाएं हाथ की तर्जनी पर अगर पिछले चुनाव की स्याही लगी हो और उसके निशान दिख रहे हों तो स्याही बाएं हाथ की तर्जनी की जगह मध्यमा या बीच की उंगली में लगाई जाएगी।”‘

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