जंगल के बीचोंबीच है कालीचौड़ मंदिर, मां काली करती हैं अपने भक्तों की हर मुराद पूरी…


कालीचौड़ मंदिर काठगोदाम से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि मां काली मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी करती हैं। नवरात्रि पर श्रद्धालु मां काली के दर्शन करने यहां आते हैं। माना जाता है कि नवरात्रि के दिन मां के मंदिर में जो पूरी श्रद्धा से शीश झुकाता है, उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। जंगल के बीचोंबीच स्थापित कालीचौड़ मंदिर शांति का अहसास देता है। कालीचौड़ मंदिर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की तपस्या का केंद्र रहा है।
गौलापार में स्थित है कालीचौड़ मंदिर
ज्यादा जानकारी देते हुए मंदिर के पुजारी बताते है जंगल के बीचोंबीच मां काली का प्राचीन मंदिर हल्द्वानी के गौलापार में स्थित है। कथित तौर पर 1930 के दशक में पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक भक्त को देवी ने सपने में दर्शन दिए थे और इस जगह पर जमीन में दबी अपनी प्रतिमा के बारे में बताया था। जिसके बाद जमीन की खुदाई कर मां काली समेत सभी मूर्तियों को बाहर निकाला गया और जंगल के बीचोंबीच ही देवी का मंदिर स्थापित किया गया, जिसे आज कालीचौड़ मंदिर नाम से जाना जाता है। जंगल के बीचोंबीच स्थापित कालीचौड़ मंदिर शांति का अहसास देता है।
कालीचौड़ गौलापार में स्थित काली माता का प्रख्यात मंदिर है। हल्द्वानी से 10 किमी और काठगोदाम से 4 किमी की दूरी पर स्थापित कालीचौड़ मंदिर के लिए काठगोदाम गौलापार मार्ग पर खेड़ा सुल्तानपुरी से एक खूबसूरत पैदल रास्ता जाता है। खेड़ा सुल्तानपुरी से कुछ दूर चलने के बाद निर्जन और सुरम्य जंगल के बीच एक कच्ची पगडण्डी आपको कालीचौड़ के मंदिर तक ले जाती है।
कालीचौड़ से सन्तों के अध्यात्मिक जीवन की शुरुआत
गुरु गोरखनाथ, महेन्द्रनाथ, सोमवारी बाबा, नान्तीन बाबा, हैड़ाखान बाबा सहित अनेक सन्तों ने अपने अध्यात्मिक जीवन की शुरुआत में कालीचौड़ में ही तपस्या कर मां काली की कृपा से ज्ञान की प्राप्ति की। मंदिर के पुजारी अभिषेक सुयाल बताते हैं कि पायलट बाबा ने अपनी पुस्तक ‘हिमालय कह रहा है’ में कालीचौड़ के माहात्म्य का उल्लेख किया है। पायलट बाबा के शिष्य आज भी अपनी साधना कालिचौड़ आकर ही शुरू किया करते हैं।