वनभूलपुरा के अतिक्रमण की याचिका पर टली सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जानिए वजह…


हल्द्वानी मे रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी बुधवार को सुनवाई होनी थी। क्योंकि आज की तारीख बहुत ही महत्वपूर्ण थी। इसलिए सभी पक्षों की तरफ से बड़ी तैयारी की गई थी। लेकिन- बुधवार को होने वाली ये सुनवाई नहीं हो सकी। मामले की सुनवाई करने के लिए दो जजों की खंडपीठ तय की गई है। लेकिन ये जज संविधान पीठ में व्यस्त थे। जिसकी वजह से ये सुनवाई नहीं हो पाई।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था उन्हें चाहिए बनभूलपुरा की जमीन!
इससे पहले 21 दिसंबर को सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। जिसके बाद अतिक्रमण करने वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। दरअसल उत्तराखण्ड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। जिसमें केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि देशभर में वंदे भारत जैसी स्पेशल ट्रेन चलानी है। जिसके तहत अवैध कब्जे हटाना बेहद आवश्यक हो गया है। केंद्र सरकार ने कहा रेलवे स्टेशनों के विस्तार के लिए रेलवे के आस-पास हुए अतिक्रमण को हटाना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट में रेल मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में हल्द्वानी स्टेशन ही एक विकल्प है जिसका विस्तार किया जा सकता है। लेकिन यहां अतिक्रमणकारी कब्जा कर बैठे हुए हैं। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उत्तराखंड में 4365 हेक्टेयर भूमि पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। ऐसे में रेलवे अपनी भूमि का उपयोग नहीं कर पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से रेल मंत्रालय अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई गई रोक हटाने की मांग लगातार कर रहा है। क्योंकि 5 जनवरी 2023 को दिए गए अंतरिम आदेश के चलते हल्द्वानी स्टेशन के विस्तार संबंधी योजना पिछड़ रही है।
दरअसल अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने 29 एकड़ भूमि से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा रखी है। साथ ही इसे मानवीय मुद्दा करार दिया था। तब सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि 50 हजार लोगों को रातों-रात नहीं हटाया जा सकता है। रेलवे के मुताबिक उसकी जमीन पर 4365 परिवारों ने अवैध कब्जा कर रखा है। जबकि दूसरे पक्ष का दावा है कि वे जमीन के असली मालिक हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने विवादित क्षेत्र की तस्वीरें और अखबार की खबरों को भी दस्तावेज के तौर पर दाखिल किया है। हलफनामे में रेल मंत्रालय ने इसका जिक्र भी किया है। मंत्रालय इस मामले में पहले ही हलफनामा दाखिल कर साफ कर चुका है कि अतिक्रमण के बदले पुनर्वास या मुआवजा मुहैया कराने की कोई नीति या प्रावधान नहीं है।
बता दें कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गोला नदी में अवैध खनन के मद्देनजर जुलाई, 2008 में सुनवाई शुरू की थी। रेलवे का पक्ष जानने और उचित मानने के बाद ही नैनीताल हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी किया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा रखी है।