उत्तराखंड: क्यों मनाया जाता है हरेला पर्व! जाने पर्व का महत्व…


देवभूमि उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक हरेला पर्व आज मंगलवार को धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार को प्रकृति से जुड़े होने के कारण हरियाली का आगमन ऋतु परिवर्तन भी कहा जाता है।
हरेला केवल आस्था या धार्मिक विश्वास का प्रतीक नहीं है, बल्कि प्रकृति से लगाव और प्रेम को भी दर्शाता है। इतना ही नहीं, हरेला को हरियाली और नई ऋतु के आगमन का सूचक भी माना गया है। वैसे तो हरेला पूरे उत्तराखंड का महापर्व है लेकिन मुख्यत: इसे कुमाऊं में मनाया जाता है।
नौ दिन पहले बोया जाता है हरेला पर्व
देवभूमि उत्तराखंड का महापर्व हरेला एक प्राचीन और पौराणिक परंपरा है। इस पर्व की शुरुआत 9 दिन पहले हो जाती है। 9 दिन पहले घरों में किसी बांस के टोकरे में हरेला बोया जाता है और इसे सींचा जाता है। इसके बाद हरेला पर्व के दिन विधि-विधान से पूजा के बाद इसे काटा जाता है और कटे हुए हरेला को घर के सभी सदस्य अपने कान के पीछे लगाते हैं। इसे अच्छी फसल, हरियाली और ऋतु परिवर्तन का सूचक माना जाता है। मान्यता के अनुसार हरेला की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
यह माना जाता है हरेला का महत्व
हरेला के पर्व से सावन की शुरुआत माना जाती है। पहाड़ों में मान्यता है कि यदि हरेला के दिन पौधारोपण किया जाए तो वह पौधे सुखते नहीं है और अच्छी तरह फलते-फूलते हैं। साथ ही हरेला का पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। यह भी कहा जाता है कि हरेला में जितना अच्छा हरेला होगा। उस साल उतनी ही अच्छी फसल भी होगी। इस दौरान स्कूलों व कॉलेजों में कई रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है।