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दीपावली से पहले कीजिए अनोखे श्रीलक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन! जहां महिलाएं करती हैं भगवान का श्रृंगार.. वीडियो…

उत्तराखंड को देवभूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है। देवभूमि में आपको ऐसे अनेक मंदिर मिलेंगे जिनकी अलग अलग मान्यताएं है। वहीं कुछ ऐसे मंदिर भी होते हैं जहां महिलाओं का गर्भगृह में प्रवेश वर्जित होता है लेकिन इसके अलग चमोली जिले में एक ऐसा मंदिर भी है जहां सिर्फ महिलाओं को ही भगवान के गर्भ गृह में श्रृंगार (साज सज्जा) का अधिकार है। हम बात कर रहे है उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में स्थित भर्की गांव की। यहां घने जंगलों के बीच भगवान विष्णु का मंदिर स्थित है, जिसे ‘फ्यूलानारायण’ नाम से जाना जाता है। वहीं श्रद्धालु इसे लक्ष्मीनारायण मंदिर भी कहते हैं।

यह एकमात्र ऐसा हिमालय की श्रृंखला में स्थित मंदिर है, जहां के कपाट महज डेढ़ माह के लिए खुलते हैं। साथ ही मंदिर में महिलाओं द्वारा भगवान नारायण का फूलों से श्रृंगार किया जाता है। और मंदिर में पूजा का जिम्मा क्षत्रिय जाति के लोगों का होता है।

यह देखिए वीडियो…

पौराणिक मान्यता है कि स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी उर्गम घाटी में पुष्प लेने पहुंची तो उन्हें यहां भगवान विष्णु विचरण (घूमते) दिखाई दिए। अप्सरा ने भगवान विष्णु को यहां फूलों से बनी माला भेंट की। साथ ही अप्सरा ने भगवान का विभिन्न रंग के फूलों से श्रृंगार किया था। तब से यहां महिलाओं की ओर से भगवान के श्रृंगार की परंपरा है। घाटी में दुर्वाशा ऋषि ने भी कई सालों तक तपस्या की थी।

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स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर में नारायण की मूर्ति चतुर्भुज रुप में विराजमान है। नारायण की मूर्ति के दोनों तरफ जय विजय दो द्वारपाल हैं, जिन्हें स्थानीय लोगों द्वारा नारायण के बच्चे भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि नारायण के द्वारपाल जय विजय थे। नारद मुनि को एक बार प्रणाम न करने के कारण दोनों को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया था। जिनका दूसरा जन्म रावण व कुम्भकरण के रुप में हुआ। श्री फ्यूलानारायण मन्दिर में नारायण मां नन्दा स्वनूल, जाख क्षेत्रपाल, वन देवियों, पितरों की पूजा की जाती है और अखण्ड धूनि अग्नि कपाट बन्द होने तक जलती रहती है। प्रत्येक दिन पूजा के अलावा बाड़ी व सत्तू का भोग भगवान को लगाया जाता है।

यहां नारायण की एक पुष्प वाटिका भी है। इस पुष्प वाटिका में अनेक प्रकार के रंग बिरंगे फूल खिलते हैं। साथ ही बताते हैं कि नारायण का श्रृंगार करने वाली स्त्री, बालिका को स्थानीय फ्यूयाण कहते हैं। क्योंकि महिलाएं मासिक धर्म के चक्र से बंधी होती हैं। जिस वजह से मंदिर में 10 साल से कम उम्र की बालिका या 55 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाएं ही नारायण का श्रृंगार करती हैं। जिसके लिए वे बगिया से फूल नारायण के श्रृंगार के लिए लाती हैं।

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कब खुलते हैं मंदिर के कपाट फ्यूलानारायण के कपाट प्रत्येक वर्ष श्रावण (जुलाई) में खुलते हैं। असूज की नंदा अष्टमी (अक्टूबर) के बाद नवमी तिथि को बंद कर दिए जाते हैं। यहां दर्शन पूजन करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भक्तों को मिलता है। जिससे उनके जीवन में कभी भी धन सौभाग्य की कमी नहीं होती।

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